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भला शख्स कब का खुदा हो गया / आनंद कुमार द्विवेदी
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सुना है कि अहले वफ़ा हो गया
वो फिर से किसी पर फ़िदा हो गया
हमारी सदाएँ न सुन पायेगा
भला शख्स कब का खुदा हो गया
मैं मुद्दे की बातें तो करता मगर
मेरा नाम ही मुद्दआ हो गया
दिलों की जहाँ से निभी कब मियाँ
मनाया इसे, वो ख़फा हो गया
किसे चाह तर्के-ताल्लुक की थी
जुदा होने वाला जुदा हो गया
कसम है जो मुँह में जुबाँ भी मिले
मेरा हाल कैसे बयाँ हो गया ?
तमाशे दिखाने लगा दर ब दर
ये ‘आनंद’ शायर से क्या हो गया