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भले आए / अज्ञेय
Kavita Kosh से
राम जी भले आये-ऐसे ही
आँधी की ओट में
चले आये बिन बुलाये।
आये, पधारो।
सिर-आँखों पर।
वन्दना सकारो।
ऐसे ही एक दिन
डोलता हुआ आ धमकूँगा मैं
तुम्हारे दरबार में :
औचक क्या ले सकोगे
अपनी करुणा के पसार में?
जनवरी, 1969