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भले की ख़ातिर भली है दुनिया / कैलाश झा 'किंकर'
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भले की ख़ातिर भली है दुनिया
बुरे की ख़ातिर बुरी है दुनिया।
नहीं हमारी खिली है दुनिया
अभी तो लगती कली है दुनिया।
विकास होगा हरेक का अब
प्रयास में तो लगी है दुनिया।
बराबरी ही दिखेगी हरसू
नज़र में ऐसी बसी है दुनिया।
विजय पताका फहर रहा है
मगर किसी की डरी है दुनिया।
दिलों में बसना नहीं है आसां
शिकायतों की लड़ी है दुनिया।