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भले ही उम्र भर कच्चे मकानों में रहे / अशोक रावत

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भले ही उम्र भर कच्चे मकानों में रहे,
हमारे हौसले तो आसमानों में रहे.


हमें तो आज तक तुमने कभी पूछा नहीं,
क़िले के पास हम भी शामियानों में रहे.


उड़ानें भी हमारे सोच में ज़िंदा रहीं,
ये पिंजरे भी हमारी दास्तानों में रहे.