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भाँवर / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

काट करीला रे गाधे बिजना,
काट करीला रे गाढ़े बिजना,
ले उत्तर के किंजर भंवरी आँगना माँ रे।
सीचे ला जावय पकड़य धीवरी चेनी अँगरी।
सीचे ला जावय पकड़य धीवरी चेनी अँगरी॥
किंजर भंवरी अँगना मा रे।
पथरा के भीठी माटी के नहाड़ोर।
गारी बोली दय ले माया ला झिना तोर।
काट करीला रे गाधे बिजना ले।
काट करीला रे गाधे बिना ले।
ले उत्तर के किंजर भँवरी अँगना माँ रे।

शब्दार्थ- करीला=एक बाँस का नाम हरा बाँस, गाधे बिजना=पर्रा-बिजना, किंजर=घूमना, भँवर=भाँवर/फेरे, धीवरी=मछली, चेनी अंगरी=छोटी ऊँगली, भीठी=भीत या दीवार, माटी के नहाड़ोर=मिट्टी के बने चिन्ह या अलंकरण, माया=ममता, झिना=मत।

भाँवर (फेरे) लगाते समय इस ददरिया गीत को गाया जाता है। गीत गाने वाली महिलाएँ गा रही हैं- हे दूल्हा-दुल्हन! तुम करीला बाँस से बने पर्रा बिजना (बाँस का बोल आसन) से उतरकर आँगन में बने मंडप के नीचे घूमो। भाँवर फिर लो।

मछली पकड़ने गये और चेनी अँगरी यानी सबसे छोटी ऊँगली के बराबर मछली पकड़ी। अरे। दुल्हा-दुल्हन तुम पर्रा बिजना से उतरकर भाँवर फिर लो।

देखो पत्थर की दीवार पर मिट्टी के नोहडोर यानी मिट्टी से सुंदर-सुंदर उद्रेखण अलंकरण बनाये गये हैं। दूल्हा-दुल्हन पर्रा-बिजना से उतरकर जरा भाँवर फिर लो। मुझे भले ही गाली दे लो, लेकिन इस प्रेम या ममता को मत तोड़ना या भूलना। बहन जरा इस गीत को धीरे-धीरे से गाना। प्यार से ही गाना।

अरे। दुल्हा-दुल्हन पर्रा-बिजना से उठकर अपने भाँवर पूरे कर लो। गीत चलता रहता है। और दूल्हा-दुल्हन दोसी और सुआसा के मदद से भाँवर पूरा करते हैं। इस समय दोसी, दूल्हा और सुआसा पर्रा-बिजना में दुल्हन को बैठाकर फेरा घुमाते है। इसे ‘कुँवारा-कुंवारी भाँवर’ कहते हैं, जिसमें दूल्हा हाथ लगाता है।