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भाई बन कर जो करे शत्रु सदृश व्यवहार / रंजना वर्मा

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भाई बनकर जो करें, शत्रु सदृश व्यवहार।
रोग सदृश मत पालिए, कर दीजे उपचार।।

करे कपट मय आचरण, रहे दिखाता प्रेम
समझ लीजिए ह्रदय में, सत्य ना उसका प्यार।।

पोषण जिससे पा रहे, उससे हुए विरुद्ध
जो तरु छाया दे रहा, उस पर करें प्रहार।।

सहनशील होते सदा, धरती नदियाँ वृक्ष
विस्मृत कभी न कीजिए, जो इनके उपकार।।

वायु श्वांस हित चाहिए, पोषण चाहे देह
प्रकृति सदा से दे रही, जीवन का उपहार।।

पापनाशिनी हर नदी, बहता निर्मल नीर
वृक्ष कभी मत काटिए, यह जीवन का सार।।

पंचतत्व वाली प्रकृति, रहे संतुलित नित्य
विपदाओं से मुक्त हो, सदा सुखी संसार।।