भाई ये मेरे ख़ाते-बही किसलिये / सूरज राय 'सूरज'
भाई लहज़े में ये चाशनी किसलिये।
कोरे काग़ज़ पर मेरे सही किसलिये॥
सारे किरदार थे पूरे-पूरे मगर
ये कहानी अधूरी रही किसलिये॥
पंख काटे मेरे बाज़ दर पर खड़ा
फिर भी पंजों में ये हथकड़ी किसलिये
शायरी गांव की ठण्डी भोली हवा
शह्री कूलर-सी जादूगरी किसलिये॥
वो अकेला-अकेला था संसार में
लाश की आँख फिर भी खुली किसलिये॥
ग़ौर से सबको ख़ुशियों ने देखा मगर
सिर्फ़ मुझपे नज़र सरसरी किसलिये॥
तू समन्दर है दिल भी समन्दर-सा रख
यार तुझमे भी दरियादिली किसलिये॥
उम्र जिसकी तुम्हारे लिए थी रहन
उसकी मैयत में यूँ हड़बड़ी किसलिये॥
मख़मली राह जूते गुलों के मगर
फिर भी ऐड़ी तेरी हैं कटी किसलिये॥
क़ैद चश्मों में आँखें तुम्हारी रही
आ गई आँख में किरकिरी किसलिये॥
जानते हो कि दुश्मन मेरा, वक़्त है
फिर भी तोहफ़े में मुझको घड़ी किसलिये॥
खाद पानी अगर कोई देता नहीं
शाख़ नफ़रत की फिर भी हरी किसलिये॥
ज़िंदगी शब है तो फिर चिरागां जला
यार "सूरज" की चमचागिरी किसलिये॥