भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाई / नरेन्द्र जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(दिवंगत बड़े भाई के लिए)

जहाँ तक छायाचित्र संबंधी समानता का प्रश्न है
बड़े भाई लगभग मुक्तिबोध जैसे दिखलायी देते थे
चेहरे पर उभरी हड्डियाँ और तीखी नाक
जीवन रहा दोनों का एक जैसा कारुणिक
और विषम
वह एक प्रतीक जो आया कविता में
जहाँ होता रहा पुनरावलोकन जीवन और समय का
जिसमें फ़ैली रही तंबाखू की गंध और
ऐसी ही चीज़ें तमाम बहिष्कृत

भाई बीड़ी पिया करते थे और
करता हूँ याद वह काला सफ़ेद छायाचित्र
जिसमें गहरी तल्लीनता में डूबे मुक्तिबोध
सुलगा रहे अपनी बीड़ी

लगभग एक सी जीवन शैली
एक सी ज़िद दोनों की

और २७ जनवरी १९७८ को
कैंसर वार्ड से प्रेषित
भाई का यह अंतिम पोस्टकार्ड मैं पढ़ता
उसी तरह
जैसे कविता मुक्तिबोध की।