भागो-भागो रँग लिए महँगाई डायन आई है / जयप्रकाश त्रिपाठी
भागो-भागो रंग लिए महँगाई डायन आई है....
बिना पिए त्योहार नशे में, भीखू अपरम्पार नशे में
फाँके से घर-बार नशे में, सबका कारोबार नशे में
जेब-जेब को तंग किए महँगाई डायन आई है।
नून-तेल-लकड़ी के मारे घूम रहे हम बने बेचारे
सौ-सौ मोटर-कार खड़ी हैं उनके अगवारे-पिछवारे
लगता जैसे जंग लिए महँगाई डायन आई है।
देखो जी, कैसे पिचकारी मार रहा बेशर्म तिवारी
देह दिखाए हड्डी-हड्डी, भूखे पेट न होय कबड्डी
भूँजी भाँग, भुजँग लिए महँगाई डायन आई है।
लूट मची है खुल्लमखुल्ला. बने चुनावी चोर-चिबिल्ला
कहीं भूख का हल्ला-गुल्ला, कोई काट रहा रसगुल्ला
घर-घर को बैरँग किए महँगाई डायन आई है।
डाल के सबके जड़ में मट्ठा, उधर खड़े सब हट्टा-कट्टा
गिफ़्ट लिए मंत्री का पट्ठा, ख़ुश अफ़सर के चट्टा-बट्टा
होली सँग दबँग लिए महँगाई डायन आई है।