भाग्य में स्वराज / चंदन द्विवेदी
देश में अकाल हो बावजह बवाल हो
पक्ष और विपक्ष पर न उठ रहा सवाल हो
तमतमाये तम तभी तुम तपस्वी तनो
दीपक में स्नेह डाल बाती जलाना है
भाग्य में लिखने स्वराज फिर कलम उठाना है।
सो रहा विपक्ष हो असहाय लक्ष्य हो
आहत हो भारती, लहूलुहान वक्ष हो
औषधि न काम आये रुग्णता इतनी बढ़े
हर पहाड़ को उठा संजीवनी बनाना है
भाग्य में लिखने स्वराज फिर कलम उठाना है।
बढ़ रहा जो ताप हो चहुंओर पाप हो
रक्षक ही भक्षक हो इसका संताप हो
मन की शीतलता को एक नवीन यत्न कर
सूरज की देहली पर चांद एक उगाना है
भाग्य में लिखने स्वराज फिर कलम उठना है।
हांफती हवा हिले ढह रहे हों जब किले
संन्यासी वेश में भी जब कोई पापी मिले
खुद से खुद का रोग लिख औषध प्रयोग लिख
कंचन मन करने को योग नया लाना है
भाग्य में लिखने स्वराज फिर कलम उठाना हैं।