भाग / हरिऔध
हैं पड़े भूल के भुलावों में।
कब भरम ने भरम गँवा न ठगा।
क्या कहें हम अभाग की बातें।
आज भी भाग भूत भय न भगा।
बिन उठाये न जायगा मुँह में।
सामने अन्न जो परोसा है।
है भरी भूल चूक रग रग में।
भाग का ही अगर भरोसा है।
जब बने तो बने गये बीते।
काहिली हो सकी न जौ भर कम।
भाग कैसे अभाग तब पावे।
जब रहे भाग के भरोसे हम।
पा सके जो जहान में सब कुछ।
क्या न थे वे उपाय कर करते।
हैं उमगते उमंग में भर जो।
दम रहे भाग का न वे भरते।
पाँव पर अपने खड़े जो हो सके।
ताक पर-मुख वे सभी सहते नहीं।
बाँह के बल का भरोसा है जिन्हें।
वे भरोसे भाग के रहते नहीं।
बीर हैं तदबीर से कब चूकते।
करतबी करतब दिखाते कब नहीं।
भाग वाले हैं जगाते भाग को।
भाग की चोटें अभागों ने सहीं।
क्यों न रहती सदा फटी हालत।
पास सुख किस तरह फटक पाता।
करतबों से फटे रहे जब हम।
भाग कैसे न फूट तब जाता।
है नहीं जब लाग जी से लग सकी।
लाभ तो होगा नहीं मुँह के तके।
जब जगाने से नहीं जीवट जगी।
भाग कोई जाग तब कैसे सके।
देख करतूत की कमर टूटी।
बेहतरी फूट फूट कर कोई।
जब न हित आँख खुल सकी खोले।
किस तरह भाग खुल सके कोई।
हम अगर हाथ पाँव डाल सके।
तब कुदिन पीस क्यों नहीं पाता।
फट पड़ा जब अभाग का पर्वत।
भाग कैसे न फूट तब जाता।