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भाग 22 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि

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लखे रानियों ने गिरे वे निसानं।
तभी जान लीनो नहीं भूप प्रानं॥
मँगाई गउ अै’ यिे कोटिदानं।
करैं संग पति को, चढैंगी विमानं॥220॥

किती ‘कृष्ण कृष्णं’ करै ‘राम रामं’।
तजत प्रान लागी सुता मात वामं॥
पड़ी कूद केती, भई टूक-टूकैं।
किती ताल में जाय डूबी अचूकैं॥221॥

किती पेट मरैं पड़ी पेसकबजैं।
किती सीस काटें, कोई नाहीं बरजैं॥
किती ही कटारें सुमारें मरी हैं।
किती सेल की नोंक पारें करी हैं॥222॥

किती पत्थरों पै पटकि सिर मुई हैं।
नृपति तेग लै किती सत्ती हुई हैं॥
पिये घोर विष के कई ने पियाले।
किती मार मरिया करेजे में भाले॥223॥

किती ने सु-हीरे की खाई कनी हैं।
उड़ी दारुओं की बिछाकै घनी हैं॥
किती तेल करिकै गरम गिर परी हैं।
किती हाय कहि-कहि पलक में मरी हैं॥224॥

इसी तौर से सब भईं लोट पोटं।
जिन्हें देख करकें मरीं और कोटं॥
रही नाहिं बाँदी, रही ना खबासैं।
मरीं एक ही संग होकर निरासैं॥225॥

महल में रही नाहिँ कोऊ चिरी है।
भई चित्रसाला सबै बेसिरी हैं॥
प्रजा माथ कूटै, करै सोर भारी।
बहै नैन-धारा सबै पुर्ष-नारी॥226॥

दोहा

जब महिमा मंगोल ने, देखो यहि जो अनर्थ।
कूदिपर्यो तब कूप में, अब जीवन है ब्यर्थ॥227॥

होय चुक्यो जब हाल यहि, तब आई नृप फौज।
बाजत धौंसा जीत को, आये नृप जुत मौज॥228॥

कवित्त

श्री हम्मीरदेव जाय गढ़ मेंलखन लागे,
रही ना कुटुंब में युवति काहू रीति की।
सूनौ रनबास, ना खबास आस-पास कोऊ,
ह्वैकर उदास कहैं भई है अनीति की।
महिमा मंगोल हू कों जीवत न पायो जब,
अति पछितायो सुधि करि-करि मीति की।
जीत की दसा सो बिपरीत की भई है हाय,
उलटी लखी है राजनीति पूरी प्रीति की॥229॥