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भाग 2 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि

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दोहा

लिये संग बेगम सबै, बादसाह सिरताज।
मारत फिरै सिकार बन, साजे सस्त्र समाज॥11॥

सब बेगम में एक ही नवला अधिक अनूप।
मरहट्टी बेगम कहैं, ताकौ नाम सरूप॥12॥

चौपाई

सो मरहट्टी मृग पै धाई। चढ़ी तुरी मनु रूप निकाई॥
किधौं परी कै सुरी सुहाई। परभा ताकी बरनि न जाई॥13॥

कवित्त

भंजन मदन-मद, अंजन बिहूने दृग,
खंजन के गंजन करे हैं करतार नै।
आब महताब की न मालुम सिताब होत,
कुहुक किताब होत, राका ताके कारनै।
‘ग्वाल’ कवि चढ़िकै तुरंग पै कुरंग पाछै,
चलीं वह सर लै, सु उकति उचारनै।
मुख समता को कर्यो चाहै चंद चेरो ताकौ,
जानवर-वाहन चली है ताहि मारनै॥14॥

दोहा

बेगम को मृग देखिकै, भाग्यो दूर कनात।
साथ कुदायो अस्व निज, मरहट्टी सुभ गात॥5॥

महा बिकट वनखंड में, छिपिगो कहूँ कुरंग।
तब बेगम सोचन लगी, सिथिल भये सब अंग॥16॥

चौपाई

देखौ तहाँ इक मधुर बोल। बैठ्यो सुमीर महिमा मँगोल॥
चित चढ़ी चाह लागौं सुअंक। जग लगो या न लागौ कलंक॥17॥

दोहा

मैन रूप सों लखि भई, मरहट्टी मुस्ताक।
कही बाल मंगोल सों, अधर-सुधा-रस चाख॥18॥

मैं तोपै अति खुस भई, सुन महिमा मंगोल।
करि मन भयो संग तू, दिल की उलफत खोल॥19॥

कवित्त

तबै मीर महिमा मंगोल कर जोरि कहै,
अरज हमारी नेकबख्त सुनि लीजिये।
दिल्ली गढ़ नाह, नरनाहन को बादसाह,
ताकी आप बेगम न इस्क नफ्स भीजिये॥
नौकर सदा तें हम आपके निमक पले,
ऐसा फरमाइ हमें दोज़ख न दीजिये।
सुनै जो हुजूर तो करावै चूर-चूर यातें,
ए जी खूबनूर भूलहू न ऐसा कीजिये॥20॥

प्रेम परिपूरन सु बही मरहट्टी कहै,
महिमा मंगोल सुन बात मेरी कान दै।
मोसी खूबसूरत को पाय खूबसूरत तू,
करता न भोग, है अजोग जिद जान दै।
मेरा दिल तुझपै हुआ है मुस्ताक खूब,
भोग करि मोते पहुँचाऊँ भिस्त थान दै।
जो पै नहिँ मानै तो पकरवाऊँ साह पास,
प्रान कढ़वाऊँ तेरे तन तन बान दै॥21॥