भाग 6 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
पूछ्यो प्रात बुलायकैं, नृपति सभा के धाम।
क्यों आये, अरु कौन हो, कहा तिहारो नाम॥52॥
मीर उवाच
महिमा मीर मंगोल मैं, दिल्ली-पति को चोर।
करि आयो तकसीर जो, करै न दूजो और॥53॥
कवित्त
बात सब पिछली सुनाई महाराज आगै
कीनी तकसीर ऐसी समै बल पाइकै।
नजर पसार देखी, धरती चहूँधा पर,
कोऊ ना समायो बिच आँखिन के आयकै।
छत्रीपति छत्री महाराज आप सुनियत,
सरन गहे की तुम्हें लाज है सुभाय कै।
राखिये चरन में गरीब-परवर मोहि,
दूसरो न कोई, जहाँ जाऊँ अब धाय कै॥54॥
दोहा
गह दीजौ मत साह कों, राखौ पक्की आब।
जो कदाचि गहि देउ तो, दीजे अबहि जवाब॥55॥
भूप उवाच, कवित्त
खातिरजमा सों तुम रहियो हमारे पास,
एक बादसाह कहा, लाख क्यों न आवहीं।
जौं लों रवि, चंद, वेद, छंद औ’ प्रबंध नभ,
जौं लगि गयंद-बृंद अस्वन के धावहीं।
जौं लगि सुमेर देव-मंडल अखंडल हैं,
जमुना-तरंग गंग जौं लगि बहावहीं।
ए सब नसाई तौऊ मैं न पकराऊँ तोहि
मारिकै भजाऊँ साह, साके कवि गावहीं॥56॥
दोहा
सुनी बात नरनाह की, मीर कह्यो उतसाह।
करि सराह बैठ्यो जहाँ, बोलत मुख तें वाह॥57॥
झुकि दिवान ने कान में, कही नृपति सों चाहि।
चलि इकंत सुनि लीजिये, तब फिर राखौ याहि॥58॥
लै दिवान नृप को गयो, बैठ्यो बँगला बीच।
कहत बात निज बुद्धि की, राजनीति सों सींच॥59॥
कवित्त
दिल्लीपति बादसाह ताहि ने पठायो याहि,
खाई-कोट-किले को मँगायो भेद वाने है।
केते हैं सवार औ’ हथ्यारवारे केतिक हैं,
कोतल कतार औ’ कितेक तोपखाने हैं।
केता है खरच, केता हात है खजाना जमा,
कौन की सलाह भूप नीके करि माने हैं।
लाकलाम महिमा मंगोल आयो याही हेत,
जो पै नहिँ आयो म्लेच्छ, ताको भेजो वाने है॥60॥