भाग 7 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
विप्रन को बैरी सदा, गोवध को सरदार।
सो म्लेच्छ के वासते, क्यों लीजे प्रण धार॥61॥
भूप उवाच, (कवित्त)
अतल बितल फिर सुतल तलातलहू,
बहुरि महातल रसातल पताल लों।
सातों लोक नीचे के उलटि आवैं ऊपर कों,
तौऊ मैं न त्यागौं निज धर्म अंत काल लों।
छत्री के जनम, क्यों अछत्री के गहौं मैं कर्म,
आयो जो सरन ताहि राखौं प्रन भाल लों।
टारौं नहिँ बोल मैं हम्मीर देव मंत्री सुन,
मारूँ फौज साह की, सहज ही के ख्याल लों॥62॥
दोहा
महिमा मीर मंगोल सों, यह काहू कहि दीन।
भूपति सों दीवान ने, तेरी नाहीं कीन॥63॥
मीर उवाच
तबै मीर महिमा नृपति पास आयो।
सभा बीच ठाडो बचन यों सुनायो॥
अभी बादसाही न दल है सिधायो।
नहीं बादसााह आप आकार कै छायो॥64॥
नहीं बादसा मोरचे आ लगाये।
नहीं बान बरछे जँबूरे चलाये॥
नहीं आय गाजे यहाँ तोपखाने।
नहीं आप साजे अभी बीर बाने॥65॥
न आयो उधरसे कोई अब तलक है।
न कीनी बँदुकों की अब ही सलक है॥
इधर आपके कोट किल्ले बने हैं।
सजे सूर सब ही उछाहें सने हैं॥66॥
सस्त्रों पैं सबके जिलह चढ़ रही है।
सुभटों के तन पै झिलम मढ़ रही है॥
भरे खास हर एक तरह अन्न के हैं।
तुरंगं मतंगं सभी तन्न के हैं॥67॥
भरे जल अथाहें चहूँ ओर सेती।
लगे घास तुंदे भुसों के समैती॥
बारूद घनी और सिक्के घने हैं।
करोरों ही गोले सु किसने गिने हैं॥68॥
दोहा
सभी तरह अब तलक तुव, बन-ठन रही सु आब।
अब भी कुछ बिगड़ा नहीं, दीजे मोहि जवाब॥69॥
भूप उवाच, (कवित्त)
कहत हम्मीरदेव भूपति बलिंद ऐसैं,
महिमा मंगोल बात मेरी सुनि लीजिये।
कूरमैं बराह तजै, ताको फिर सेस तजै,
सेसै तजै पोहमी, तऊ न तो पतीजिये।
पच्छिम में उदै कहूँ होय जो प्रभाकर को,
सागर मृजाद त्यागि उमड़े अखीजिये
टरि जायें दिग्गज हू दसों दिसि दसहूँ ते,
टरिहै न मेरी बाक परतीत कीजिये॥70॥
दुख दल, दीह दल, दलि डारौं दौरि करि,
मलि डारौं सोच के समूह हर राह तें।
काटि डारौं कटक कटीले कोट मुगलों के,
चाटि डारौं चुगलों केरुधिर उछाह तें।
‘ग्वाल’ कवि जो पै श्री हम्मीरदेव मेरो नाम,
महिमा मंगोल बोल पूरो चित चाह तें।
आप दुख पाऊँ, पै न तोहै पकराऊँ कभूँ,
भारत मचाऊँ औ’ बचाऊँ पातसाह तें॥71॥