भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये / कोदूराम दलित
Kavita Kosh से
भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,
नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।
केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,
मंछरिया भाजी लायं ओली भर भर के ।।
मछरी मारे ला जायं ढीमर-केंवट मन,
तरिया "औ" नदिया मां फांदा धर-धर के ।
खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,
ढूंटी-मां भरत जायं साफ कर-कर के ।।