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भाठो / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
औ बगत भाठो हुयग्यो
मारै बटीड़ उणनैं
जिको सोच सकै
बोल सकै
झूठ नैं झूठ
अर साच नैं साच।
फूल जैड़ो लागै उणनैं
जिको काळै नैं धोळो
अर धोळै नैं काळो कैवै।