भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाड़ में जाए / असंगघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारा
पिता होना
माँ होना
बेटा होना
बेटी होना
बहु होना
कोई मायने नहीं रखता
तुम्हारे लिए
हम केवल गुलाम हैं

तुम माई हो
बाप हो
हुजूर हो
मालिक हो

मुझसे चाहते हो
कि
मैं तुम्हें कहूँ
गोड़ पडूँ महराज,
और
तुम साले
पैदा होते ही
हो जाते हो
महाराज
पंडिऽऽऽऽऽजी

भाड़ में जाएँ
साहब...
सलाम
और
तुम्हारे पाँव

मैं
इन पर
मारता हूँ कुल्हाड़ी।