भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भात जो माँगन चली बैना भैया की नगरी / बुन्देली
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भात जो माँगन चली बैना भैया की नगरी
भतइया भारी भीर भई।
जाओ बैना मोरी असढ़ा में अइयो
सो वन के गुड़इया गये। भात जो...
जाओ बैना मोरी सावन में अइयो
सो वन के सिंचइया गये। भात जो...
जाओ बैना मोरी भादों में अइयो
सो वन के निदैया गए। भात जो...
जाऔ बैना मोरी कँवार में अइयो
सो वन के बुबइया गये। भात जो...
जाओ मोरी बैना कातिक में अइयो
सो वन के चुटैया गये। भात जो...
जाओ मोरी बैना अगहन में अइयो
सो वन के कटैया गये भतइया...
जाओ मोरी बैना पूस में अइयो
सो वन के कुरिया पड़ीं। भतइया...
जाओ मोरी बैना माघ में अइयो
सो रंगिया के रंगन गई। भतइया...
जाओ मोरी बैना फगुना में अइयो
सो दर्जी के सिवन गई। भतइया...
काहू दीनौ लाँगा काहू दीनौ लुुंगरो
सो अंगिया कों ठिनक चली। भात जो...