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भादव हे सखि जन्म लीन्हा / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

भादव हे सखि जन्म लीन्हा नगर मथुरा धाम यौ
बसथि गोकुल ब्रज में कान्हा बनि यशोदा के लाल यौ।

आशिन हे सखि कंश सुनल कृष्ण लेल अवतार यौ
जाह पूतना यशोदा आँगन कृष्ण लाहु उठाय यौ।

कातिक हे सखि भेष बदलल लेल लहरी संग यौ
विहूसि पुछल यशोदाजी सँ बालक देखब तोर यौ।

अगहन हे सखि आदर दीन्हा आशीष देल भरि मोन यौ
धन्य भाग हमर द्वार विप्र आयेल पाहून यौ।

पूस हे सखि बालक देखल आशीष देल भरि मोन यौ
लेल पूतना गोद अपन बदन विहूसि लागय यौ।

माघ हे सखि हम त जानल इहो थिका कंशक दूत यौ
कंठ दाबल उदर फारल पूतना गेल मुरझाई यौ।

फागुन हे सखि हम नहीं जानल इहो थिका पूर्ण ब्रम्ह यौ
बालक जानी हम गोदी लेलौं कृष्ण कैल जिवघात यौ।

चैत हे सखि नाग नाथल लेल पतरा हाथ यौ
चहू दीस मोहन घुमि आबथि बैसल यशोदा के कोर यौ।

 बैसाख हे सखि उसम लागे आनंद गोकुल लोक यौ
देह हुनका शोभनी पीताम्बर पैर में झुनकी बाजु यौ।

जेठ हे सखि गाय चराबथि साँझ के घुरथी मुरारी यौ
संग सखा मिली कुंज वन मे मुरली टेरथी भगवान यौ।

अखार हे सखि गम गम करैत अछि चहू दिस बरिसय मेघ यौ
लौका जे लौकई बिजुरी चमकै दमकै कान कुंडल यौ।

साओन हे सखि मास बारहम कृष्ण उतरथि पार यौ
हम भेलहुँ अधीन हरी के पुरल बारह मास यौ।