भानु-भवन इक लाली प्रगटी, घर-घर जत बधाई हो / स्वामी सनातनदेव
राग भैरव, कहरवा 21.9.1974
भानु भवन इक लाली प्रगटी, घर-घर बजत बधाई हो।
भरि-भरि थार रतन-भूसन बहु लावहिं लोग-लुगाई हो॥
रावल में अति चीजसों छायो मंगलचार।
महा-महा मंगलमयी लियो आज अवतार॥
लियो आज अवतार अमंगल लीन्हीं सहज विदाई हो!॥1॥
गावहिं मंगल गीत बहु, नाचहिं भरे उमंग।
वारि-वारि भूसन वसन देहिं, बढ््यौ अति रंग।
देहिं बढ़्यौ अति रंग, लेहिं जो तेहूँ देहिं लुटाई हो!॥2॥
दही दूध के भार बहु लावहिं नर अरु नारि।
हरदी की जरदी मिला डारहिं उमँगि अपार॥
डारहिं उमँगि अपार, दही की कीच अजिर में छाई हो!॥3॥
नाचहिं कूदहिं बाल बहु करि-करि कल कल्लोल।
मेवा अरु मोदक मिलहिं, क्रीडहि निज-निज गोल॥
क्रीडहिं निज-निज गोल ‘कुँवरि की जय-जय’ दिसि-दिसि छाई हो!॥4॥
वन्दी मागध सूतजन करि विरुदावलि गान।
वंसावलि वर वरनिके तोरहिं बहु विधि तान॥
तोरहिं बहु विधि तान, मानसों पावहिं भूरि विदाई हो!॥5॥
देव सिद्ध मुनि हूँ तहाँ आये धरि बहु भेस।
दरस-परस करि लली को उमँगे प्रेमावेस॥
उमँगे प्रेमावेस पुलकि तिन बहु गुनगाथा गाई हो!॥6॥
एहि विधि श्रीवृषभानु-गृह उमँग्यौ अति आनन्द।
आनन्द की आनन्दिनी निरखि दुरे सब छन्द॥
निरखि दुरे सब छन्द, हमहुँ तहँ मनभाई निधि पाई हो॥7॥