भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भानु भौंपेलो / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हिंडवाणी कोट मा रन्दो<ref>रहता</ref> छयो<ref>था</ref> हंसा हिंडवाण,
वो त होलो अनमातो<ref>अन्न से भरपूर</ref> धनमातो<ref>धनी</ref>
जैकी बार<ref>बारह</ref> छन तिवारी, बत्तीस नीमदरी<ref>हवेली</ref>,
मट्टी जसो अन्न होलो, ढुंग्यों<ref>पत्थर</ref> जसो धन,
बार छन बेटा जैका, अठार छन नाती।
तब हिण्डवाणी कोट मा पड़े, बार बरस को अकाल,
देखा बड़ा पेड़ा, न लायान भूक,
छोटा न पड्यान दूख।
हिण्डवाणी कोट मा, कनी तराइ<ref>त्राहि</ref> मचीगे,
रोन्दा छन, बराँदा<ref>बिलखते</ref> भूखन नौना,
देखी-देखीक, जिकुड़ी चिरेन्दी।
बत्तीसू कुटूम तैकू, भूखन चचलाण<ref>तड़पने</ref> लैगे,
बड़ो आदमी छयो, हंसा हिण्डवाण,
वैकू शरम ऐगे, अपणा आँसू पीगे।
कै मू अपणी, विपता कया लाण,

कै मू मैंन अब, मांगणक जाण?
विता का दिनू, अपणा भी होंदा पराया।
गाडे़<ref>निगली</ref> वैन तब, खोड<ref>गोष्ठ</ref> की लगोठी<ref>बकरा</ref>,
मिठो जैर<ref>जहर</ref> डाली, दिने बत्तीस कुटुम।
तब बत्तीसों कुटुम, वैको स्वर्गवास ह्वैगे,
अफू भी ढकी गै राजा, तिवारी का अडासा<ref>सहारे</ref>।
वे को बैटा भानू, मामाकोट छयो जायँ
तब लौटी आये, हिण्डवाणी कोट मा,
सूनो चौक देखे वैन, सूनकार तिवारी,
घूमद ऊं बार तिवारियों, बाईस निमदारियों,
तब देखीन वैन, अपणू बत्तीसों कुटम
जागू<ref>जगह</ref> जागू मू मरियूं।
तब चाखुड़ी<ref>चकोर</ref> सी रीटदो<ref>चक्कर काटना</ref>, भानू भौपेलो,
रौंदू छ बराँदू, कपाल फोड़ी-फोड़ी।
कै मा नी सुणाँद, बदनामी की डर,
लोक बोलला, रजा की कुटमदारी, भूखन मरी गए।
शरम को मारो छौ वो, विपता को हारो,
बत्तीस कुटम को वैन, एकू भारो लगाये,
तब लीगे ऊं रवि-छाला<ref>किनारे</ref> मुंग।
चिता बणाई वैन, अपणी जिकुड़ी
सल मा जगदी देखे फूकेन्दी।
तब चिता कों राखो लीक, भानु भौपेलो,
ऐगे हिण्डवाणी कोट माँग!
सूनी तिवारी वै, तब खाण औन्दीन,
तब बोल्द वो, भानू भौंपेलो:
मैंन यख रैक, क्या त करण?
तब उतान्याँ वैन, राजों का कपड़ा,

बणाये मालू<ref>मालू के पत्तों का अंगरखा</ref> की झगली, मालू की टोपली<ref>टोपी</ref>,
छोड़याली तब वैन, हिण्डवाणी कोट।
तब राजपाट छोड़ीक, शैरू <ref>शहर</ref> शैरू घूमद,
एक शैर छोड़ी राजा, दूसरा शैर जान्द
दूसरा शेर छोड़ी, तीसरा चौथा शेर जान्द।
छठा शेर मा जाँद, कालूनी कोट मा,
कालूनी कोट मा, रन्दो छयो सजू कलूनी।
तब सजु कलूनी मा, भानू जदेऊ<ref>जयदेव, नमस्कार</ref> लगौद,
रजा तेरी बलया जौलू, मैं छऊँ गरीब छोरा,
गरीब छोरा छऊँ, मैं नौकर धन्याल।
छारा, नौकर धरलू, तिन तनखा क्या लेण?
गरीब छोरा छऊँ, रोटी दियान कपड़ा।
तउ सोचदू सजू, अछू नौकर मिले,
त्वई लैख<ref>लायक</ref> काम, डाँडू की मरूडी<ref>छानी, झौंपड़ी</ref> हमारी,
डाँडों की करूड़ी, घास काटण की नौकरी।
तब फेंक्याले वैन, मालू की झूली टोपली,
सजून दिन्या, फट्यां-पुराणा बस्तर।
तब सामल पांजायाले, बतैले डाँडा को बाटो,
वे डाँडा मरूड़ी बैठा, घास काटण।
तब भानु भौपेलो गैगे, वीं डाँडा मरोड़ी,
सजू कलूनी की छई, एक नोनी अमरावती,
नोनी अमरावती, छई सुघर तरुणी।
वींन देखे, छोरा एक औन्द, तब बोदे:
मैंन पैले बोल्याले, छोरा आँगण छूत न करी।
मैं तेरा ब्वई<ref>माँ</ref> बुवान<ref>बाप</ref>, नौकर भेजेऊँ,
ई डाँडा मरूड़ी, मैन घास काटण।
तू अबी लोटी जा, धसेर छोरा,
यख मर्द का नौं<ref>नाम</ref>, माखो<ref>मक्खी</ref> नी औन्दी।

वा ज्यों-ज्यों ना करदी, छोरा अगाड़ी औन्दो,
तब अमरावती, भौत गुस्सा ऐगे;
न औ न औ छोरा, मैं आज
चाँदू<ref>नाम</ref> बेन्दू<ref>नाम</ref> बेलों<ref>भैंसा</ref> मू, तेरी श्किार खेलौण।
वा ज्यों-ज्यों ना करदी, छोरा अगाड़ी औन्दो-
कैको होलो यो, निरभागी छोरा,
कै अभागी माँ की, होली कोख सूनी?
तब चढ़े वीं, सिंहणी को रोष-
खोल्या वींन, चाँदू बेन्दू बेला।
लम्बा-लम्बा सिंग छा ऊँका, बड़ा बड़ा आँखा,
पड़ी गेन वो, वैकी धाद<ref>पीछे</ref>।
दौड़दो छ दौड़दो छोरा, विपता को मारो,
तब एक बिरछ, मारदो अंग्वाल।
इना छया, चाँदू बेन्दू बेला-
वै बिरछ सणी, जड़ उखाड़ कर्ण लैग्या।
तब छोरा तै चढ़ी, छैत्री को जोश,
सची होलू मैं हिंडवाण वंश को जायो,
एक ही मुठीन चाँदू बेन्दू फोत<ref>मौत</ref> होई जान।
तब एक एक, मुठ्यों मा ही
वैन चाँदू बेन्दू, चित्त करीया लौन।
हकदक रैगे तब, अमरावती रौतेली,
यो छोरा होलू, मालू<ref>योद्धा</ref> मा को माल।
तब पूछदी वा, नौं गौं छोरा को,
हे छोरी मैं छऊँ, हिंडवाणी कोट को रौतेलो,
हंसा हिण्डवाड को बेटा, छऊँ मैं भानु भौपेलो।
किस्मत को मारो छऊँ, बिता को हारो,
आज बण्यू छऊँ, तेरो घास काटदारो।
तब बोदे राणी अमरावती-
राजों कू रोतूलू होलू तू, पर मैं

शब्दार्थ
<references/>