भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस / संजय चतुर्वेद
पिछली सदी में दक्षिण एशिया से
एक बहुत बड़ा राजनीतिक संगठन उभरा
जिसने सारे क्षेत्र में सत्ता के केन्द्रों पर
निर्णायक असर डाला
और मोहनदास करमचन्द जैसे लाखों लोगों ने
जिसमें सेवक कार्यकर्ता और नेता की तरह बरसों काम किया
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में ख़ुदमुख़्तार सरकारें बनने से पहले ही
महात्मा को मार दिया गया
इससे पहले कि हिन्दू महासभा हरकत में आती
जिन्ना और जवाहरलाल उस काम को निपटा चुके थे
वह जब तक जिया
सबके लिए मुश्किल बनकर जिया
उसकी विरासत
पाकिस्तान में नामंज़ूर हो गई
और हिन्दुस्तान में सत्ता का फ़र्नीचर
सन साठ और अस्सी के बीच
जब देश का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन
एक पारिवारिक गिरोह में तब्दील होता गया
तो मध्यवर्ग में राजनीतिक हलचल हुई
खाते पीते लोग जो लोकतन्त्र के उपभोक्ता थे
उन्हें लगा लोकतन्त्र ख़तरे में है
लेकिन इस अखण्ड तमाशे से दूर
सारी सदी इस भूभाग के बहुजन
एक रोज़मर्रा के आपात्काल में जिए
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस उनके जीवन में
न अपना कोई आपात्काल पैदा कर सकी
न कोई टाल सकी ।
2000