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भारती पुकारै छै / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
ऐही ठांव छेलै एक गाँव भैइया
देखै नय छी होकरोॅ नाम भैइया।
जौनी गामो रोॅ सबटा लोग मिली
हमरा लेॅ दै छेलै भोग-बली।
कौनेॅ लेलकै हरी ऐकरोॅ फूल-कली
झुकलोॅ सिर दीखै हरेक ठाँव-भैइया। देखै नय छी
होॅव फूलोॅ रोॅ कौनेॅ बात करै
यहाँ चोरो से दिन आरू रात डरै।
होकरै पत्ता मेॅ भात धरै
बोलै नय कोय चूँ से चाँव भैइया। देखै नय छी
जौ हमरा स तोरा मतलब छौ
हमरोॅ अचरा भी भींगलोॅ छौ।
होकरा जगावो जे मातलोॅ छौ
प्रेम नगरी मेॅ राखी केॅ पांव भैइया। देखै नय छी