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भारती वन्दना / सीताराम झा
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भारतीय भाल भाग्य लेखकें बनाय दृढ़
भासल, कुपन्थ प्राप्त पुत्रकें सुधारती,
धारती प्रवीणा वर वीणापाणि-पंकजमे
रंक जनताकें दैन्य-दाव सौं उबारती।
वारी विवेक-दीप, करूणा-कटाक्ष हेरि
मोह-तमपुंज भार देश केर उतारती
तारती प्रमाद-पाँक लागल अभागलकें
घूमि गेह-गेहमे विदेह-भूमि भारती।