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भारतें चाहै छेलै / जटाधर दुबे
Kavita Kosh से
आजाद भारतें चाहे छेलै
सुरभित प्रभात
काम से भरलोॅ दिन
सुख से भरलोॅ रात,
सभ्भे केॅ घोॅर मिलेॅ
भरपेट भोजन मिलेॅ
काम करै के सुख मिलेॅ,
अमीर के अमीरी कम होबेॅ
गरीबोॅ केॅ ग़रीबी कम होबेॅ
अहिंसक, स्वर्णमय देश होय जाय।
लेकिन भ्रष्टाचार
आरो जनविरोधी माफिया
केॅ गठजोड़ ने सुक्खोॅ केॅ हवा केॅ
दुक्खोॅ केॅ आंधी में बदली देलकै।
ई गठजोड़ के विरोध शुरू होय गेलै,
देश के अंधकार मिटावै लेली
दीया जली चुकलोॅ छै।
राष्ट्रवाद आरो जनशक्ति के धारा से
है सनी दीपोॅ के ज्वाला
तीव्र से तीव्रतर होय रहलोॅ छै।
देश में फैललोॅ कचरा केॅ जलाय केॅ
देश करोॅ माटी केॅ
स्वच्छ करै के अभियान
शुरू होय चुकलोॅ छै॥