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भारत की क़िस्मत क्या बदली / सुधेश

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भारत की क़िस्मत क्या बदली
छाई है निर्धनता की बदली।

सुनता तो हूँ जा देखूँगा
गाँवों में पहुँची है बिजली।

काले बादल कुछ तो भागे
चमकी तो है नभ में बिजली।

अब तो डूबा तैरूँगा ही तब
छोड़ेगी जब काली कम्बली।

उस से लड़ता ही आया हूँ
पर क्या मेरी क़िस्मत बदली?

जब से तुम आए हो प्यारे
तब से मेरी तबियत सँभली।