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भारत की संतान / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
हम हैं अपनी
माँ की आशा
भारत की संतान।
चंद्र्वंश के हम वंशज हैं
भारत हमारा नाम,
सिंह हमारे साथ खेलता,
शौर्य हमारा काम,
हमें देख कर
हर क्षण कण-कण
करता है अभिमान।
कभी न लगने दिया आज तक
इस पर कोई दाग,
आदिकाल से आजतलक हम
करते हैं अनुराग,
हमने हरदम
खेल जान पर
रक्खी इसकी शान।
लाख बिछाये शत्रु सुरंगें
फैलाये आतंक,
विषधर बन फूंफकारे हरदम
मारे बिच्छू डंक,
आँधी-अंधड़
के आगे हम
होंगे इक चट्टान।