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भारत के दिनमान तुम्हीं हो / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
प्रगति तुम्हारा लक्ष्य रहा है
रोज बढ़ाओ कदम अढ़ाई।
बढ़ाना ही है काम तुम्हारा,
होगा इससे नाम तुम्हारा,
पढ़ लिखकर यदि बढ़ा बने तो
सब होगा अभिराम तुम्हारा,
जीवन में खुशियाँ भर देगी
अगर लगन से करो पढ़ाई।
कोई नहीं बड़ा औ' छोटा,
कोई नहीं खरा औ' खोटा,
काला होने पर भी माँ को,
अच्छा लगता है कजरोटा,
गुण की होती सदा बड़ाई,
मन को भाती सिल्क-कढ़ाई।
घर-घर के अरमान तुम्हीं हो,
जननी की मुसकान तुम्हीं हो,
नीले नभ चढ़कर चमको
भारत के दिनमान तुम्हीं हो,
ऊँची चोटी पर चढ़ना है,
घबड़ओ मत देख चढ़ाई।