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भारत के सांस्कृतिक दूत बाबू महातम सिंह / चन्द्रमोहन रंजीत सिंह

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सिरनाम देश में भारत से संस्कृतिक दूत जबसे आए।
हो गई धन्य हिन्दी भाषा, हिन्दी प्रेमी के मन भाए।।
कौरव गण में घिरी द्रौपदी, मन ही मन अकुलाती थी।
निज रक्षा हित भीष्म द्रोण पर, अपनी नजर घुमाती थी।।
पर सब से आशा टूट गई, मन जा पहुँचा गिरधारी पर।
हे प्रभुवर रख ले लाज मेरी, कर दया दयानिधि नारी पर।
बन गई द्रौपदी थी हिन्दी, सब आशा उसकी विफल भई।
मन जा पहुँचा करुणानिध पर, कुछ सूझ पड़ी तब युक्ति नई।
धर रूप प्रभु तो ना आए, हिन्दी की मान बढ़ाने को।
पर दूत पठाए भारत से हिन्दी की शान बढ़ाने को।।
हे बाबू महातम किए, किए त्याग तपस्या तुम भारी।
क्या कभी उऋण होंगे मन से, सिरनाम के सारे नर नारी।
मन ही मन हिन्दी के प्रेमी यश बाबू जी की गाते हैं।
गाते हैं यश गाते हैं नित जै जैकार मनाते हैं।