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भारत से बड़ा कोई / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
भारत से बड़ा कोई संविधान नहीं है।
बतला क्या मेरे देश की यह शान नहीं है।
जो जान गँवाते है यहाँ, देश की ख़ातिर,
बढ़कर कोई भी इससे बलिदान नहीं है।
एक साथ यहाँ रहते हैं हिंदू और मुसलमान,
सुंदर बना क्या ये मेरा हिंदुस्तान नहीं है।
नफ़रत को हवा देता है जो देश में मेरे,
उससे कोई बढ़कर यहाँ शैतान नहीं है।
बहती है जहाँ देख लो गंगा विकास की
तारीफ़ करो तू कोई अंजाम नहीं है।
विश्वगुरु मेरा यह भारत भी बनेगा,
हम एक हैं अब कोई व्यवधान नहीं है।
हर धर्म का, हर जाति का, हर पंथ का है देश,
सब वासी यहीं के, कोई मेहमान नहीं है।
‘प्रभात’ तिरंगा यही कहता है फहर के,
आतंक का कोई यहाँ स्थान नहीं है।