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भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा / निश्तर ख़ानक़ाही

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भारी था जिसका बोझ वो लम्हा लिए फिरा
सर पर मैं इक पहाड़ को तन्हा लिए फिरा

आँखें थीं बंद देखने वाला कोई ना था
ऐसे में दिल का दाग़! तमन्ना लिए फिरा

इस फ़िक्र में कि चेहरा-ए-मौजूँ कोई मिले
होठों पे मैं ख़याल का बोसा लिए फिरा

समझा नहीं कि ख़िल्क़ को रास आ गई है धूप
नाहक़ मैं इस दयार में साया लिए फिरा

नादाँ हूँ दिल पे हर्फ़्र-वफ़ा लिख के शहर-शहर
मैं यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता लिए फिरा

1-ख़िल्सा-संसार

2-नाहक़--व्यर्थ

3-यादगारे-एहदे-गुज़िश्ता -बीते दिनों की याद