भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारी बस्ता / उषा यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ तेरी छोटी-सी गुड़िया,
इसको उठा-उठा हारी है,
उफ, बस्ता कितना भारी है।

कैसे करूँ किताबें कम कुछ,
सब विषयों को पढ़ना होगा,
पैंसिल बॉक्स छूट न जाए,
इसे ध्यान से धरना होगा।

अपनी सारी चीजें गिनकर
ले जाना होशियारी है।

ढेर किताबें, ढेर कापियाँ,
लंच बॉक्स भी बड़ा जरूरी,
टॉफी की रंगीन पन्नियाँ,
ले जाना भी है मजबूरी।

राधा की गुड़िया की शादी-
की करनी तैयारी है!