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भारी भूल / हरिऔध
Kavita Kosh से
सूझ औ बूझ के सबब, जिस के।
हाथ में जाति के रहे लेखे।
है बड़ी भूल और बेसमझी।
जो कड़ी आँख से उसे देखे।
वे हमारे ढंग, वे अच्छे चलन।
आज भी जिन की बदौलत हैं बसे।
दैव टेढ़े क्यों न होंगे जो उन्हें।
देखते हैं लोग टेढ़ी आँख से।
हिन्दुओं पर टूट पड़ने के लिए।
मौत का वह कान नित है भर रहा।
खोद देने के लिए जड़ जाति की।
जो कि है सिरतोड़ कोशिश कर रहा।
जी सके जिस रहन सहन के बल।
चाहिए वह न चित्त से उतरे।
कर कतरब्योंत बेतरह उस में।
क्यों भला जाति का गला कतरे।