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भालू का रसगुल्ला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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भालू चाचा मचा रहे थे,
सुबह सुबह से हल्ला|
शेर चुराकर भाग गया था,
उनका एक रसगुल्ला|
सभी जानवर भाग दौड़कर,
पकड़ शेर को लाये|
मुश्किल से रसगुल्ला,
भालूजी को दिलवा पाये|
हाथ जोड़कर तभी शेर ने,
सबसे मांगी माफी|
”कभी न अब आगे से होगी,
हमसे ये गुस्ताखी|”
”चोरी करना ठीक नहीं है,
सुनलो मेरे भाई|”
शेरसिंह को सभी जानवरों,
ने फटकार लगाई|