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भाल पे होंठ किसने रखे / शिव ओम अम्बर
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भाल पे होंठ किसने रखे,
ज़िन्दगी में महावर घुली।
दृष्टि वो बाँसुरी बन गई,
देह ये हो चली गोकुली।
लौटकर फिर वहीं आ गये,
राह थी प्यास की वर्तुली।
निष्कलुष हो गई है नज़र,
आँख क्या आँसुओं से धुली।
ज़ख़्म छिलने लगे वक्ष के,
गीत की जन्मपत्री खुली।