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भावनाओं के क्षितिज पर / प्रताप नारायण सिंह
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यह, भावनाओं के क्षितिज पर
गुनगुनाता कौन है!
नवगीत कोई आचमन सा
विमल अधरों पर धरे
निष्पाप स्वर के कम्पनों में
बोल अति निश्छल भरे
फिर, सो चुकी सम्भावनाओं
को जगाता कौन है!
निष्काम, दाता-कर्म में रत
कृष्ण के उपदेश सा
निर्लिप्त हो हर लालसा से
उमापति के वेश सा
आनंद के आयाम नव
इतने, दिखाता कौन है!
वह पास कितना, दूर कितना
यह नहीं परिमेय है
अनुभूति में ही वास करता
छुवन से अज्ञेय है
वाचालता से मौन के
परिचय कराता कौन है!