भावनाओं पर लगा पहरा हुआ।
है अधर पर बोल हर ठहरा हुआ॥
पूछ बैठा प्यार से जब भी कोई
दर्द दिल का और है गहरा हुआ॥
द्रौपदी की चीर है जब-जब खिंची
मूक था ईमान सच बहरा हुआ॥
ठेस लगती ही रही है चोट पर
जब छिला हर जख़्म और हरा हुआ॥
बादलों को अब दया आती नहीं
सब्ज़ गुलशन आज है सहरा हुआ॥