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भावना की बात / नवारुण भट्टाचार्य
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एक रोटी में छिपी है कितनी भूख
एक जेल कितनी इच्छाओं को बंद रख सकती है
एक अस्पताल में कितने कष्ट अकेले सोते हैं
कितने समुद्र हैं एक बारिश की बूँद में
एक पक्षी मरता है
तो कितने आकाश समाप्त हो जाते हैं
एक लड़की के होंठ छिपा सकते हैं
कितने चुंबन
एक आँख में जाले पड़ने से कितनी रोशनियाँ
गुल होने लगती हैं
एक लड़की मुझे
कितने दिन अछूता बना रखेगी
एक कविता लिखकर मचाया जा सकता है
कितना कोलाहल