भावाकुल मन की कौन कहे मजबूरी।
बोल उठी है मेरे स्वर में
तेरी कौन कहानी,
कौन जगी मेरी ध्वनियों में
तेरी पीर पुरानी,
अंगों में रोमांच हुआ, क्यों
कोर नयन के भीगे,
भावाकुल मन की कौन कहे मजबूरी।
मैंने अपना आधा जीवन
गाकर गीत गँवाया,
शब्दों का उत्साह पदों ने
मेरे बहुत कमाया,
मोती की लड़ियाँ तो केवल
तूने इनपर वारीं,
निर्धन की झोली आज गई भर पूरी।
भावाकुल मन की कौन कहे मजबूरी।