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भावुकतावश / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
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भावुकतावश मन ने तुम पर
शत-शत श्रद्धा सुमन चढ़ाये
तुम निर्मम पाहन निकलोगे
यह मन को मालूम नहीं था।
प्रीत-प्रणय के रूप नगर की
हर मुख से तारीफ़ सुनी थी
त्यागा था इसलिए राजपथ
बिन मंजिल की राह चुनी थी
तुमने ऐसा लोभा, सारे
चाँदी के तोहफे ठुकराये
तुम खोटे क´्चन निकलोगे
यह मन को मालूम नहीं था।
तुमको सौ-सौ बार बुलाया
पर न मिले सपनों से ज़्यादा;
तुमने सचमुच खूब निबाही
छलने वालों की मर्यादा,
आता देख तुम्हें स्वागत में
अगणित मेघ मल्हार गुँजाये
तुम सूखे सावन निकालोगे
यह मन को मालूम नहीं था।
हर आशा की एक उमर है
उससे अधिक नहीं जा सकती
इसीलिए नादान प्रतीक्षा
हर पल अश्रु नहीं पी सकती
मैं तो केवल आया तुम तक
पाने मुस्कानों के साए
तुम वीरान चमन निकलोगे
यह मन को मालूम नहीं था।