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भाव कुछ अपवाद के / अश्वघोष
Kavita Kosh से
लड़खड़ाए शब्द
फिर अनुवाद के ।
भोर के दिल में अनोखी धुंध है
धूप का भी व्याकरण अब कुंद है
जुड़ गये हैं भाव
कुछ अपवाद के ।
शीत में इक अग्निवर्णी घाम है
शान्ति में भी हर तरफ़ कोहराम है
होंठ सूखे जा रहे
अवसाद के ।
देख ली हमने शरारत शूल की
पसलियाँ हैं रक्तरंजित फूल की
टूटकर सपने गिरे
आल्हाद के ।
लड़खड़ाए शब्द
फिर अनुवाद के ।