भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाषा-2 / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मेरी भाषा सपनों की सहयात्री है
जैसे कल देखा मैंने सपना
बरस रही थी आसमान से आग
आज मेरी भाषा यह पौधा रोप रही है