भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाषा की स्मृति / रंजना मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंगलेश डबराल के लिए

हर नए दुख के लिए
भाषा के पास कुछ पुराने शब्द थे
हर नया दुख भाषा के प्राचीन शब्दकोश का
नया सन्धान

हर नए दुख के बाद
भाषा की अछूती पगडण्डियाँ तलाशनी थीं
चलते चले जाना था
वन कन्दराओं आग पानी घाटियों में

हर अन्त एक शुरुआत थी
हर शुरुआत अपने अन्त की निरन्तरता

कोलाहल भरी लम्बी यात्राओं के बाद मैने पाया
दुख छुपा बैठा था
शब्दों के बीच ठहरे मौन में
आसरा ढूँढ़ता था
सबसे सरल शब्दों का

हर नए दुख की उपस्थिति
भाषा की आदि स्मृति थी