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भाषा के नट / नीरज नीर

भाषा के नट
करते हैं कलाबाजियाँ
शब्दों की तनी रस्सी पर
ताकि लोग कौतुक से
देखें उनका करतब
और बजाएँ तालियाँ
उनकी दक्षता पर
पर उनकी कलाबाजियाँ
नहीं बदल सकी है
आज तक
किसी की किस्मत
मरते किसानो को नहीं दे पायी
जीने की प्रेरणा
और न ही ख़त्म कर पायी
युवाओं की कुंठा
आज कविता को
नटों की नहीं
किसानों की ज़रूरत है।