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भाषा / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
भाषा
पिराण
जड़ अर चेतन री
अरथावै
निराकार नै
करण साकार!
भाषा खूटै
रुळै
जड़-चेतन
चेतन-जड़
थकां आकार!