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भाषा / कुमार कृष्ण

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पहली बार मिली जब मैं एक पंडित को-
मैं मन्त्र बन गई
पहली बार मिली जब मैं एक वैद्य को-
मैं दवा बन गई
पहली बार गाया मुझे किसान ने थकान के ख़िलाफ़
स्त्री ने बनाया मुझे मंगलगीत
स्कूल से मंदिर तक बजती रही मैं हर बार-
घंटी की आवाज़ पर
काले कोट वाले आदमी ने-
पहली बार जब मुझे नंगा किया सच के ख़िलाफ़
मैं बहुत छटपटाई
मैंने बार-बार किए आत्महत्याओं पर हस्ताक्षर
एक माँ ने बनाया मुझे लोरी
एक दादी ने भजन
जगजीत सिंह ले गए मुझे अपने हारमोनियम के अन्दर
तमाम होंठों पर मैं गुनगुनाई
ईश्वर के मन्त्र में मनुष्य के तन्त्र में
मैंने बदले कई-कई रूप
मैं थी प्रसाद की कामायनी
निराला कि सरोज स्मृति
प्रेमचंद की रंगभूमि
मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस
शिवकुमार की लूणा भी मैं ही थी
अमृता प्रीतम के रसीदी टिकट पर-
मैंने ही करवाये थे साहिर के हस्ताक्षर
भगत सिंह के नारों की सबसे बड़ी उम्मीद
मैं ही थी
सोचा था मैंने-
पूरी दुनिया को पढ़ाऊंगी प्यार की परिभाषा
बस चुनी थी इसीलिए मनुष्यों की दुनिया
नहीं पता था मुझे मैं बनूंगी द्रौपदी
मत करो मेरा चीरहरण
जीने दो मुझे पुरानी ठसक के साथ
मत जकड़ो मुझे किसी मन्त्र में किसी तन्त्र में
मेरा है अपना एक लोकतन्त्र
दौड़ना चाहती हूँ मैं एलियट के वेस्टलैण्ड में
गोर्की की माँ भी हूँ मैं
मैंने ही किए थे बेशुमार सुराख-
लोर्का के नेरुदा के शब्दों में
मैंने ही बिंधा था हर बार-
गालिब का फिराक का तसव्वुर
सूई हूँ मैं
फटे पुराने रिश्तों की आशा
संधियों का सकून
मनुष्यता कि महानायिका
कल्पना कि रानी, सपनों की वाणी
धरती की गुड़धानी
राग-आग की मंजरी
मत काटो मेरे पंख
पाखी हूँ मैं आकाशचारी हंसिका
मैं हूँ फिनिक्स
आता है मुझे जीना बार-बार मरकर भी।