भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाषा / रणविजय सिंह सत्यकेतु
Kavita Kosh से
एक भाषा प्रेम के, सबकेॅ मिलावै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा सहयोग के, सबके काम आवै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा अहिंसा के, सबकेॅ सबसें जोड़ै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा नकार के, सबके दुनियाँ उजाड़ै छै
ई केकरौ नै बुझावै छै ।