भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भिन्नता / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे साथ
प्यार करने के बाद
पता चला मुझे
कि कितनी सहज रह सकती हो तुम
और मैं कितना बेचैन

कितनी सहज रह सकती हो तुम
घर में सदैव मुस्कराती
रसोई में कोई गीत गुनगुनाती
अच्छी बीवी का दायत्व निभाती
कि घर दफ़्तर
कहीं भी मालूम नहीं पड़ता
कि किसी के प्यार में हो तुम

पर मैं हूँ
कि तुम्हारे न मिलने पर
झल्ला उठता हूँ
बेचैन हो जाता हूँ
अपने आप पर क्रोधित होता हूँ
खूँटे पर बँधे हुए
जिद्दी घोड़े की तरह
अपने पाँव तले की ज़मीन उखाड़ता हूँ
और सारी दीवारें तोड़ कर
तुम्हारे तक आने के लिए
भागता हूँ

मेरी बेचैनी
तुम्हारी सहजता से
कितनी भिन्न है ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा