भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भींत / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
आपां सगळा
'इगो' सारू लड़ां
अर अेक दूजै रै बिचाळै
खींचद्यां भींत
जकी
बधै रातोरात
मैं'गाई ज्यूं
पछै
भळै 'इगो' टकरावै
तद
भींत
कीं' और बध ज्यावै।